मानवता के उत्थान में संत रामपाल जी का महत्वपूर्ण योगदान है।
विषय :- मानवता के पतन तथा महिलाओं पर हो रहे यौन उत्पीड़न, कुरीतियों तथा बुराईयों
को रोकने के लिए जनहित याचिका।
निवेदन :- देश में गिरती मानवता के कारण प्रतिदिन हो रहे यौन अपराधों, महिला उत्पीड़न,
हत्याऐं, सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा भ्रष्टाचार, बैंक घोटाले, दहेज के कारण
वधुओं द्वारा की जा रही आत्महत्याऐं, उनके कारण सास-ससुर, ननद, पति व अन्य परिजन जेल में जाते
हैं। परिवार बर्बाद हो जाते हैं। नशीली वस्तुओं के सेवन से युवा वर्ग नष्ट हो रहा है। इन सबके समाधान
के लिए हमारे सतगुरू संत रामपाल दास जी द्वारा किए जा रहे प्रयत्न के जनता तक पहुँचाने में आने
वाली बाधाओं को दूर करने के लिए निवेदन।
भारतवर्ष में हम संत रामपाल दास जी महाराज के लगभग नब्बे (90) लाख अनुयाई हैं। हम
दावे के साथ कह रहे हैं कि यदि संत रामपाल दास जी के सत्संग विचार भारत की जनता सुन लेगी
तो भारत की धरती स्वर्ग बन जाएगी। इनके विचारों से प्रभावित होकर हम सब अनुयाई सामान्य तथा
सभ्य व सुखी जीवन जी रहे हैं।
‘‘मानवता के Ðास का कारण’’
संसार में मानवता तथा अच्छी संस्कृति का पतन दिनो-दिन हो रहा है। कारण :-
मीडिया में युवाओं (लड़के-लड़कियों) को आकर्षित करके धन कमाने का उद्देश्य लेकर बनाई
जा रही फिल्में, जिनमें भारत की संस्कृति से हटकर दृश्य दिखाए जाते हैं जो सभ्य समाज में कभी शोभा
नहीं देते।
उदाहरण :- फिल्मों में लड़का-लड़की के प्यार की कहानी में एक-दूसरे का चुंबन करते
दिखाना। लड़की का घरवालों से छिपकर अपने प्रेमी से मिलने जाना। ऐसे ही लड़के का अपने परिवार
से छिपकर विशेष पोषाक जो सभ्य समाज में अशोभनीय है, पहनकर लड़की से मिलने जाना। समाचार
पत्रों में लड़के-लड़कियों के अर्धनग्न चित्रा या छोटी-ओच्छी पोषाक जो 2 से 8 वर्ष की लड़कियाँ पहनती
हैं, उस पोषाक को बड़ी लड़कियाँ जो 18.20 वर्ष या इनसे भी ऊपर आयु की हैं, को पहने दिखाना
जिसका दुष्प्रभाव फिल्म देखने वाली युवा लड़कियों पर पड़ता है। जिस कारण से यह दुष्प्रभाव भारत
देश के शहरों में रह रहे परिवारों के बच्चों पर प्रथम गिरता है। फिर उन शहरी परिवारों के रिश्ते-नाते
गाँवों में होते हैं। ग्रामीण लड़के-लड़कियाँ जो शहर में अपने रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वे उनको
देखकर गाँव में भी वैसा ही आचरण करते हैं। गाँव में जो बड़े घरों के बच्चे होते हैं, वे कैसी ही पोषाक
पहनें, उनको ग्रामीण लोग मना नहीं कर सकते क्योंकि उनकी पहुँच उच्च अधिकारियों तथा उच्च
राजनेताओं तक होती है। इस डर से गाँव के सभ्य समाज के व्यक्ति चुप रहना उचित समझते हैं। जिस
कारण से वह अश्लीलता भारत के गाँवों में भी आग लगाने लगी है। युवा बच्चे अपनी मर्जी करते हैं।
माता-पिता इस डर से अधिक दबाव नहीं देते कि कहीं बच्चा नाराज होकर कोई गलत कदम न उठा ले।
समाधान :- संत रामपाल जी द्वारा सत्संग में सामाजिक कुरीतियों, पहनावे, नशीली वस्तुओं के
सेवन करने, अश्लीलता व व्यभिचार के कारण होने वाली मानवता की हानि तथा सभ्यता की हानि को
तर्क के साथ विशेष प्रभावी तरीके से समझाया जाता है। सत्संग में नए परिवार आते हैं। उनके साथ युवा
लड़के व जवान लड़कियाँ भी आते हैं। सत्संग में पहले से जुड़े परिवारों के युवा लड़के-लड़कियाँ भी
उपस्थित होते हैं जो उच्च शिक्षा प्राप्त भी होते हैं और अपनी स्वदेशी पोषाक पहने होते हैं। नए परिवारों
के बच्चे उनको देखकर अपनी पोषाक को अच्छा नहीं मानते। वे भी एक या दो सत्संग में आने से अपनी
गलत पोषाक पहनना छोड़ देते हैं। जैसे अश्लीलता वाली पोषाक को धीरे-धीरे देखा-देखी युवा बच्चों ने
स्थान दिया तो ऐसी ही सत्संग विचारों से तथा सत्संग में आने वाले पुराने श्रद्धालुओं के बच्चों का संग
करने से उनको देखकर धीरे-धीरे उससे दूर हो जाऐंगे। मानव समाज में वर्तमान में हो रहे बलात्कार,
यौन उत्पीड़न के अपराधों तथा चोरी-डाके, भ्रष्टाचार के अपराधों को समूल समाप्त करने का एकमात्रा
विकल्प संत रामपाल दास जी के सत्संग विचार तथा उनके अनुयाईयों का शिष्ट व्यवहार तथा शालीनता
को मानव समाज के सामने परोसना है। इस तथ्य की जाँच के लिए आप जी संत रामपाल दास जी
के अनुयाईयों (भक्त तथा भक्तमतियों) को देख सकते हैं। वे सब सामान्य वेशभूषा में होते हैं। भक्तमति
बाहरी दिखावे के लिए कोई विशेष मेकअप नहीं करती। परमात्मा ने जैसा बनाया है, उनके लिए वही
सर्वोत्तम है।
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में कहा है कि जो साधक शास्त्राविधि को त्यागकर
मनमाना आचरण करते हैं, उनको न सुख प्राप्त होता है, न आध्यात्मिक भक्ति की शक्ति यानि सिद्धि
जिससे कार्य सिद्ध होते हैं, प्राप्त होती है और न उनकी गति यानि मुक्ति होती है। साधक इन्हीं लाभों
को परमात्मा से प्राप्त करने के लिए साधना करता है। उन गलत साधना बताने वाले गुरूओं के
अनुयाईयों का परमात्मा से विश्वास उठ जाता है। वे फिर किसी भी बुराई को करने में संकोच नहीं
करते। विश्व में अशांति तथा उपरोक्त अपराधों के कारण हो रहे मानवता के पतन का एक कारण यह
भी है क्योंकि जो सात्विक प्रकृति के व्यक्ति (स्त्रा/पुरूष) हैं, वे स्वभाव से नम्र व नेक तथा परमात्मा से
डरने वाले होते हैं। वे संतों की शरण में जाते हैं। परमात्मा से अपने परिवार की सुख-शांति और मोक्ष
की कामना करते हैं। शास्त्राविरूद्ध भक्ति से ये मनोकामना कभी पूर्ण नहीं होती क्योंकि यह परमात्मा का
विधान धर्मशास्त्रा (श्रीमद्भगवत गीता) में लिखा है जो अटल है। वे शास्त्राविरूद्ध साधना बताने वाले
गुरूओं के शिष्य हताश होकर आवश्यकताओं की पूर्ति (मनोकामनाओं की सिद्धि) के लिए रिश्वत लेना,
मिलावट करना, धोखाधड़ी करना, अश्लील फिल्मों का धंधा करना, नशीली वस्तुओं की तस्करी करना।
लाभ-हानि होने के कारण खुशी तथा दुःख का बहाना करके शराब आदि का सेवन करना। फिर नशे के
प्रभाव में अनैतिक कार्य जैसे रेप (बलात्कार), छेड़छाड़ करना स्वाभाविक है, करने लगते हैं। वे राक्षस
स्वभाव के बन जाते हैं। विश्व में एकमात्रा शास्त्राविधि अनुसार साधना संत रामपाल दास जी महाराज
के अतिरिक्त किसी भी वर्तमान के धर्मगुरूओं के पास नहीं है। यह जाँच का विषय है। माननीय न्यायालय
केस में सर्व धर्मगुरूओं को पार्टी बनाकर स्वयं जाँच करे। सब अपना-अपना पक्ष कोर्ट में रखें। यदि यह
सुनवाई लाईव चलाई जाए तो भारत की जनता को हाथों-हाथ सच्चाई मिल जाएगी। देश की जनता भी
अपनी आँखों सत्य देखकर धन्य हो जाएगी। भारत देश स्वर्ग तो बनेगा ही, पूर्व वाला सोने की चिड़िया
भी बन जाएगा। त्राहि-त्राहि समाप्त हो जाएगी।
संत रामपाल दास जी उन सबको जो दीक्षा लेने के लिए उनके पास आते हैं, कहते हैं कि पहले
सत्संग सुनो, सत्संग की क्ण्टण्क्ण् व चिप लेकर घर पर भी ज्ञान समझो। हमारे सर्व नियम पालन करने
होंगे। आपको स्वीकार हों तो दीक्षा ले सकते हैं। यदि दीक्षा लेकर कोई भी नियम भंग कर दिया तो
परमात्मा की भक्ति से मिलने वाला लाभ बंद हो जाएगा। जैसे बिजली का कनैक्शन लेने से बिजली पूरा
लाभ देती है जो उससे अपेक्षित होता है। यदि किसी गलती के कारण कनैक्शन कट जाता है तो सब
लाभ बंद हो जाते हैं। गलती सुधारकर पुनः कनैक्शन लेने पर ही पुनः लाभ मिलता है। इसी प्रकार जिस
श्रद्धालु से गलती से नियम भंग हो जाता है, उसे अपनी गलती माननी पड़ती है। भविष्य में गलती न
करने का आश्वासन देना पड़ता है। तब उसको पुनः दीक्षा दी जाती है। जिस कारण से हम सब संत
रामपाल जी के अनुयाईयों को परमात्मा की कृपा सदा प्राप्त रहती है। हमारे छोटे-बड़े बच्चे भी नियम
खण्डित होने के डर से कोई गलती नहीं करते। जिस कारण से हम सब नेक व सुखी जीवन जी रहे
हैं। संत रामपाल जी महाराज सर्व शास्त्रों को प्रोजेक्टर के द्वारा सत्संग में श्रोताओं को प्रमाण रूप में
रूबरू करते हैं। अन्य गुरूओं के अनुयाई शास्त्रों में लिखी भक्ति विधि को देखकर जान लेते हैं कि हमारे
गुरू जी द्वारा बताई भक्ति साधना शास्त्रों वाली नहीं है। उन गुरूओं को त्यागकर संत रामपाल जी से
दीक्षा लेकर अपना जीवन धन्य बनाते हैं। इस कारण से अन्य गुरूजन, संत रामपाल जी से ईर्ष्या रखते
हैं। उन गुरूओं की पहुँच उच्च राजनेताओं तक है। जिस कारण से संत रामपाल दास जी को बदनाम
किया जा रहा है तथा झूठे मुकदमें बनाकर जेल में बार-बार डाला जा रहा है। वे चार मुकदमों में बरी
हो चुके हैं।
गिरती मानवता ही मानव समाज की अशांति का कारण है। इसी के कारण यौन अपराधों में
इजाफा हो रहा है।
एक माई (वृद्ध महिला) अनुयाई ने बताया कि आज सन् 2005 से लगभग 50 वर्ष पूर्व
बहन-बेटियाँ खेतों में किसानी कार्य करने तथा मजदूरी करने निर्भय होकर जाया करती थी। कोई व्यक्ति
या जवान पुरूष आँख उठाकर परस्त्रा व बेटी को नहीं देखता था। बेटी व बहन या चाची, ताई के
सम्मानीय शब्द से संबोधित किया करते थे। सन् 1970 के बाद के उत्पन्न बच्चे जो वर्तमान में जवान
हैं या 15 वर्ष से ऊपर के हैं, इनमें से 60 प्रतिशत की सभ्यता व इंसानियत लगभग नष्ट हो चुकी है। यह सारा काम फिल्मों ने बिगाड़ा है। उस माई ने बताया कि दस दिन पहले एक शर्मनाक घटना मेरे
छोटे लड़के की लड़की के साथ हुई। मेरे तीन पुत्रा हैं। तीनों भिन्न-भिन्न हो चुके हैं। बाल-बच्चेदार हैं।
बीच वाले लड़के की पत्नी का परिवार संत रामपाल दास जी का अनुयाई है। बीच वाले की पत्नी
कौशल्या (नाम काल्पनिक है, घटना सच्ची है) ने संत रामपाल जी से दीक्षा ले रखी है। अपनी तीन
बेटियों तथा इकलौते पुत्रा को भी संत रामपाल जी से दीक्षा दिला रखी है। कौशल्या एक दिन मुझे भी
सत्संग लाई। मेरे को भी अच्छा ज्ञान लगा। मैंने भी दीक्षा ले ली।
दस दिन पहले खेतों में गेहूँ की कटाई चल रही थी। कौशल्या अपने पति का सुबह का भोजन
लेकर गई। कौशल्या को सारा दिन खेत में कटाई करनी थी। अन्य दोनों लड़कों के परिवार भी खेतों
की कटाई के लिए गए थे। सब शाम को आते हैं। घर पर कौशल्या की बीच वाली लड़की (आयु 17
वर्ष) घर का कार्य करने के लिए छोड़ी थी। मेरे ही बड़े लड़के का छोटा लड़का (आयु 20 वर्ष) भी बीमारी
का बहाना करके घर पर ही रह गया। दिन के लगभग 11रू30 बजे कौशल्या की लड़की अपने घर ऊपर
बने कक्ष (चौबारे) की सफाई कर रही थी। बड़े लड़के के लड़के ने अपनी ही चचेरी बहन से दुष्कर्म करने
के लिए चौबारे में जाकर अंदर से कुंडी लगाकर लड़की को जबरदस्ती दबोचकर उसके मुख में कपड़े
ठोककर हाथ पकड़कर फर्श पर डाल दी।
कौशल्या ने अपने पति से कहा कि मेरी आत्मा में एक विशेष प्रकार की सिहर-सी उठ रही है
यानि भय उत्पन्न हो रहा है जैसे घर पर कुछ गलत हो रहा है। मेरा मन फसल की कटाई में नहीं लग
रहा है। मैं घर जाना चाहती हूँ। पति ने कहा कि कमाल कर रही है। फसल कटाई के लिए तैयार है।
एक दिन देर हो गई तो बालियाँ जमीन पर गिर जाएंगी। कौशल्या बोली मैं तो बालियाँ उठा लूँगी, परंतु
आज घर अवश्य जाऊँगी। यह कहकर पति के घोर विरोध के पश्चात् भी घर के लिए चल पड़ी।
परमात्मा कबीर जी की प्रेरणा थी। सीधी घर गई। नीचे लड़की नहीं मिली तो ऊपर चौबारे में जाकर
देखा। दरवाजा बंद था। जोर-जोर से दरवाजा हिलाया तो खुल गया और लड़की की इज्जत बच गई।
परमात्मा कबीर जी की भक्ति का करिश्मा है। लड़के के परिवार को बताया तो वे भी कौशल्या को ही
भला-बुरा कहने लगे कि तेरी लड़की खराब है। वर्तमान में बहू-बेटियाँ अपनों से ही सुरक्षित नहीं हैं।
चरित्रा में इतनी गिरावट आ गई है। बेटी वाले को यह चिंता खाए जाती है।
संत रामपाल दास जी के सत्संग विचार सुनकर प्रत्येक मानव (स्त्रा/पुरूष) की विचारधारा
निर्मल व सामाजिक हो जाती है।
मानवता के उत्थान के लिए बार-बार संत रामपाल जी के सत्संग में जाना अनिवार्य है। जैसे
बच्चे बुराई को गलत प्रकार के बच्चों का साथ करने से ग्रहण करते हैं। वैसे ही अच्छे विचारों वाले सत्संगी
बच्चों का संग करने से बुराई त्यागकर अच्छाई ग्रहण कर लेते हैं। सत्संग तो ज्ण्टण् चैनल पर या
मोबाईल में चिप से या यूट्यूब से भी सुन सकते हैं, परंतु सत्संग में जाने से सभ्यता, शिष्टाचार ग्रहण
होता है। सत्संग से जुड़े पहले वाले बच्चों को देखकर सत्संग में आने वाले नए बच्चे अपना गलत
व्यवहार बदल लेते हैं।
संत रामपाल जी बताते हैं कि यदि विद्यालय तथा विश्वविद्यालय के छात्रा-छात्राओं को महीने के
एक रविवार को मेरे आश्रम में सत्संग सुनने आना अनिवार्य कर दिया जाए तो एक वर्ष में पश्चिमी
सभ्यता की पोषाक व विचारों को विद्यार्थी त्याग देंगे और स्वदेशी सभ्यता का पालन करने लगेंगे। सब बुराई त्याग देंगे। गर्लफ्रैंड तथा ब्वायफ्रैंड रूपी रोग भारत की सभ्यता को लग चुका है। इसका समय रहते
संत रामपाल जी से दीक्षा लेने के पश्चात् हमने गुरू जी के आदेश का पालन करते हुए दहेज
लेना-देना पूर्ण रूप से त्याग दिया है जिस कुरीति के कारण तीन परिवार नष्ट हो जाते हैं :- 1st लड़की
का परिवार जिसकी बेटी दहेज की बलि चढ़ जाती है। उसके पास क्या बचता है, केवल रोना, मुकदमों
में धन, समय व शांति खोना। 2nd ससुराल वाला परिवार। 3rd ननंद का परिवार जेल जाकर समूल नष्ट
हो जाता है। संत रामपाल दास जी के विचार सुनकर व्यक्ति दहेज लेने व देने की सोच भी नहीं सकता। ऐसे
सटीक तरीके से सत्संग में समझाया जाता है। विवाह के नियम जो अनुयाईयों को पालन करने होते हैं :-
दहेज लेना-देना नहीं। विवाह सूक्ष्मवेद की वाणी ‘‘असुर निकंदन रमैणी’’ का उच्चारण करके
17 मिनट में बिना बैंड-बाजे व डी.जे. बजाए बिना सम्पन्न करने का गुरू जी का आदेश है।
विवाह में कोई बारात नहीं जाएगी। केवल 5 से 15 तक व्यक्ति वर पक्ष के आऐंगे। सामान्य
भोजन जो प्रतिदिन लड़की पक्ष के बनाते-खाते हैं, वही खाना दिया जाता है। संत रामपाल जी के बनाए
नियम का पालन करते हुए लगभग बीस हजार विवाह किए गए हैं। सब परिवार सुख से जीवन जी रहे
हैं। उपरोक्त तीन परिवार उजड़ने से बच रहे हैं।
‘‘फिल्में देखना मना है’’
हमारे बच्चे और हम सबको गुरू जी का आदेश है कि कोई फिल्म व धारावाहिक जिसमें
अश्लीलता का प्रदर्शन हो, न देखें। जनरल नॉलेज बढ़ाने के लिए डिस्कवरी या अन्य प्रोग्राम टी.वी.
पर देख-सुन सकते हैं। हम तथा हमारे बच्चे इसका पूर्ण दृढ़ता से पालन करते हैं। हमारे गुरू जी ने
भक्तों का गुप्तचर विभाग बनाया है जिसका अन्य किसी अनुयाई को ज्ञान नहीं। वे प्रत्येक अनुयाई पर
नजर रखते हैं। यदि कोई गलती करता है तो उसकी गुरू जी को शिकायत की जाती है। गलती करने
वाले को गुरूजी समझाते हैं कि ऐसा करने से आपके ऊपर से परमात्मा का मेहर भरा हाथ उठ जाएगा।
यह भक्ति नियम है। उसके पश्चात् वह कभी गलती नहीं करता। अन्य को भी डर रहता है कि कहीं हम
से गलती नहीं हो जाए और परमात्मा की कृपा न मिले। परमात्मा की कृपा न मिलने से जीव पर कष्ट
आते हैं। ‘‘प्रदूषण से मुक्ति’’
संत रामपाल जी का सख्त आदेश है कि किसी त्यौहार व खुशी के अवसर पर पटाखे नहीं छोड़ने
हैं। मोमबत्ती नहीं जलानी जो प्रदूषण के अतिरिक्त कुछ लाभ देने वाला नहीं है।
उस अवसर पर भी प्रतिदिन की तरह देशी घी की एक ज्योति जलाने की ही आज्ञा है। हम तथा
हमारे छोटे-छोटे बच्चे भी प्रभु कृपा छूटने (नाम सम्पर्क टूटने) के डर से आदेश का सख्ती से पालन करते
हैं। उस दिन हम परमात्मा की भक्ति प्रतिदिन की तरह करते हैं।
फगुन यानि होला तथा होली के त्यौहार पर किसी प्रकार का रंग व कीचड़ व पानी एक-दूसरे
पर नहीं डालते, न कोरड़े का खेल खेलते हैं क्योंकि वर्तमान में लोग इसके बहाने दुश्मनी निकालने लगे
हैं। आपसी झगड़े होने लगे हैं। पहले सहनशील व्यक्ति होते थे। ताकतवर होते थे जो कोरड़ों की मार
सह लेते थे। वर्तमान में धक्का लगकर गिरने से युवा श्वांस भूल जाता है। इसलिए गुरू जी ने यह खेल
सख्त मना कर रखा है। उस दिन परमात्मा की स्तुति करते हैं। जिस दिन भक्त प्रहलाद की रक्षा करके
परमात्मा ने भक्तों का मनोबल बढ़ाया है। परमात्मा पर दृढ़ विश्वास हुआ है।
दैनिक कार्य में सुविधाजनक न होने के कारण सर्व भक्तों तथा भक्तमतियों को जींस की पैंट
पहनने की मनाही है। जो हमारी संस्कृति के विरूद्ध है तथा अश्लीलता का हिस्सा है। कॉलेजों में बिना
सत्संग के परिवारों के बच्चों की सँख्या अधिक होने के कारण हमारे बच्चों को परेशानी का सामना करना
पड़ता है। फिर भी हरसंभव कोशिश करके आज्ञा पालन की जाती है। यदि सब परिवारों के बच्चों के
संस्कार ऐसे हो जाऐं तो यौवन अपराध स्वतः समाप्त हो जाऐंगे।
कबीर जी के विचारों का प्रचार करके स्वदेशी-पुरानी सभ्यता को जगाया जाता है।
कबीर, परनारी को देखिये, बहन बेटी के भाव। कह कबीर दुराचार नाश का, यही सहज उपाव।।
भावार्थ :- परमात्मा कबीर जी के विचार संत रामपाल दास जी सत्संगों में बताते हैं जिनका
मानव के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वाणी में कबीर जी ने कहा है कि दूसरे की स्त्री तथा लड़की
को अपनी बहन-बेटी के दृष्टिकोण से देखना चाहिए जिससे मन में कभी दोष नहीं आएगा। दुराचार,
बलात्कार, व्यभिचार को समूल नष्ट करने का यह सरल उपाय है।
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’
यह पुस्तक संत रामपाल दास जी द्वारा लिखी है। यदि इस पुस्तक को देश के विद्यालयों,
विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम में एक विषय (ैनइरमबज) लगाया जाए तो समाज में फैली प्रत्येक बुराई
समाप्त हो जाएगी। स्वदेशी संस्कृति पुनः जीवित होकर देश की जनता सुख से जीवन जीएगी। देश की
जनता परमात्मा से डरने वाली शुभ कर्म करने वाली बन जाएगी। यौन अपराध, नशाखोरी, जूआ, डाके,
चोरी, दहेज प्रथा, घर की तकरार (परिवार के सदस्यों की कहासुनी) समूल नष्ट होकर आपसी भाईचारा,
एक-दूसरे का दुःख साझा करना, परमात्मा की चर्चा, शिष्टाचार से व्यवहार करना मानव समाज की
परंपरा बन जाएगी। माता-पिता के प्रति बच्चों का बिगड़ा स्वभाव समाप्त होकर उनकी सेवा करने का
मन बनेगा। चरित्रा निर्माण होगा। पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ के कुछ अंश प्रस्तुत करते हैंः-
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ से कुछ विवरण :-
सर्वप्रथम भूमिका है। भूमिका से ही स्पष्ट है जिसमें लिखा है ‘‘जीने की राह पुस्तक घर-घर में
रखने योग्य है। इसके पढ़ने से लोक तथा परलोक दोनों में सुखी रहोगे। इसके पश्चात् दो शब्द तथा पुस्तक का प्रकरण प्रारम्भ होता है जिसमें लिखा है कि मानव
(स्त्रा-पुरूष) का क्या उद्देश्य है तथा भक्ति न करने से हानि तथा भक्ति करने से लाभ का वर्णन प्रभावी
ढ़ंग से लिखा है जो आत्मा को झंझोड़कर रख देता है। इंसान स्वतः बुराईयों को त्यागकर परमात्मा की
ओर मुड़ जाता है।
कुछ अंश :-वर्तमान जीवन में देखते हैं कि कोई इतना निर्धन है कि बच्चों को पालन-पोषण भी
कठिनता से कर पा रहा है। एक इतना धनी है कि कार तथा कोठियाँ कई-कई उसके पास हैं। एक रिक्शा
खींच रहा है। एक मनुष्य उसमें बैठा जा रहा है। एक सिपाही लगा है, एक पुलिस प्रमुख क्ण्ळण्च्ण् लगा
है। कोई मंत्रा, मुख्यमंत्रा, प्रधानमंत्रा, जज, डी.सी., कमिश्नर तथा राष्ट्रपति की पदवी प्राप्त है। इसका
कारण है कि जिस-जिसने पूर्व मानव (स्त्रा-पुरूष) के जन्म में जैसी-जैसी भक्ति व तप तथा दान-धर्म, शुभ
कर्म तथा पाप व अशुभ कर्म किए थे, उनके परिणामस्वरूप उपरोक्त स्थिति प्राप्त है।
यदि वर्तमान मानव जीवन में सत्य भक्ति तथा शुभ कर्म नहीं करेंगे तो सब मानव अगले जन्म
में पशु-पक्षी आदि-आदि का जीवन प्राप्त करके महाकष्ट उठाऐंगे। जैसे इन्वर्टर की बैटरी चार्ज कर रखी
है। चार्जर हटा रखा है। बैटरी काम कर रही है। सब सुविधा (पंखा चल रहा है, बल्ब, ट्यूब जग रही
हैं) प्राप्त हैं। चार्जर के न लगाने से बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है। सब सुविधाऐं बंद हो जाती हैं। जैसे पंखा
चलना, बल्ब जगना, कम्प्यूटर चलना बंद हो जाता है। बैटरी को फिर से चार्जर लगाकर चार्ज करने
पर कार्य करेगी। इसी प्रकार पूर्व जन्म में आत्मा को भक्ति से जितना चार्ज कर रखा है, उसी अनुसार
सुविधा प्राप्त होती है।
राजा लोग भी आपत्ति के समय में परमात्मा से ही आपत्ति निवारण की इच्छा से साधु-संतों से
आशीर्वाद प्राप्त करके सुखी होते हैं। सामान्य व्यक्ति को भी परमात्मा की भक्ति करके सुखी होना चाहिए।
दो मित्रा थे। एक का नाम ‘क’, दूसरे का नाम ‘ख’ था।(काल्पनिक नाम) क ने सत्संग सुना
और परमात्मा की ओर मुड़ गया। सर्व बुराई त्याग दी। उसमें आए परिवर्तन को देखकर परिवार के
अन्य सदस्यों ने भी भक्ति प्रारम्भ कर दी। घर स्वर्ग बन गया। ख को क ने बहुत समझाया कि सत्संग
सुनने चल, कल्याण हो जाएगा। वह बार-बार बहाना करता था कि बच्चे छोटे हैं। इनका पालन-पोषण
करना है। मेरे को काम से फुरसत (ज्पउम) नहीं है। तेरा तो दिमाग चल गया है। जब देखो सतगुरू
और सत्संग की बातें करता है। कुछ कामकाज की भी कर लिया कर। कुछ समय उपरांत ख की
हृदयघात से युवा अवस्था (35 वर्ष की आयु) में मृत्यु हो गई। सब छोड़कर चला गया। स्थाई फुरसत
हो गई। यदि परमात्मा की भक्ति भी करता, धंधा भी करता तो परमात्मा रक्षा करता।
वेद में भी प्रमाण है कि परमात्मा अपने भक्त के संकट निवारण करता है। यदि मृत्यु भी आ
जाए तो भी उसको टालकर जीवित करके सौ वर्ष जीवन प्रदान कर देता है। (ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त
161 मंत्रा 2 में प्रमाण है।)
विचार करने की बात है कि परमात्मा की भक्ति इसीलिए करते हैं कि साधक के जीवन मार्ग
में पाप के कारण कोई काँटा या गढ्ढ़ा है तो परमात्मा पाप का नाश करके पाप रूपी काँटे को निकालकर
मार्ग के गढ्ढ़े को भरकर सुगम मार्ग कर दे। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्रा 13 में लिखा है कि परमात्मा साधक
के पूर्व जन्म में किए पाप तथा इस जन्म में किए सर्व पापों का नाश करके सुखी कर देता है। सूक्ष्मवेद
में लिखा है :-
कबीर, जब ही सतनाम हृदय धरो, भयो पाप को नाश। जैसे चिंगारी अग्नि की, पड़ै पुराने घास।। भावार्थ :- कबीर जी ने पाँचवें वेद में कहा है कि शास्त्रा विधि अनुसार सच्चे नाम का दिल
लगाकर सच्चे मन से स्मरण करने से साधक के सब पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे पुराने सूखे घास
के ढ़ेर में अग्नि की चिंगारी गिरने से जलकर भस्म हो जाता है।
पाप के कारण दुःख होता है। पाप नष्ट होने से स्वतः सुखी हो जाता है।
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ को पढ़ने से आत्मा को अध्यात्म का सम्पूर्ण ज्ञान होगा। स्वभाव बदल
जाएगा। इन्सानियत (मानवता) पुनः पनप जाएगी। पापों से डरेगा, शुभ कर्म करेगा। ऐसे-ऐसे अनेकों
हृदय छूने वाले प्रकरण पुस्तक में भरे पड़े हैं।
‘‘विवाह कैसे करें’’ तथा ‘‘विवाह के पश्चात् की यात्रा’’
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में बताया गया है कि वर्तमान में बच्चों को अच्छे विचार नहीं मिल रहे।
जो बुजुर्ग व्यक्ति युवाओं तथा बच्चों को किसी बहाने अपने पास बैठाते थे। दो-तीन बुजुर्ग आपस में चर्चा
करते थे कि भाई! एक घटना उस गाँव में बुरी घटी है। दूसरा पूछता कि ऐसा क्या हो गया? यूँ सुना
है कि गाँव के एक जवान लड़के ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर दी। लड़की वालों ने लड़के के
साथ मारपीट कर दी। बिना कारण को जाने लड़के वालों ने लड़की वालों से झगड़ा कर दिया। लड़के
वालों के दो व्यक्ति मर गए, लड़की वालों का एक मर गया। दोनों पक्षों के कई-कई व्यक्ति घायल हो
गए। तीसरा बुजुर्ग कहता था कि हे भाई! कैसा कुपूत पैदा हो गया। तीन मानष खा गया। ऐसे पुत्रा से
बेऔलाद रह ले। कैसा खोटा जमाना आ गया। लड़के ने जुल्म कर दिया। अपने गाँव की इज्जत के
साथ खिलवाड़ कर रखा था। ऐसा कर्म कोई बालक ना करे।
उनके पास बैठे सुन रहे बच्चों पर उनकी बातों की छाप ऐसी पड़ती थी कि युवा बच्चे अन्य को
भी यही घटना सुनाकर ऐसी गलती न करने की प्रेरणा करते और स्वयं भी किसी बहन-बेटी को आँख
उठाकर नहीं देखते थे।
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ से बुजुर्गों वाली शिक्षा मिलती है। इसे पढ़ने के पश्चात् कोई व्यक्ति
दुराचार (बलात्कार) व छेड़छाड़ करना तो दूर की कौड़ी है, सोचेगा भी नहीं। इस पुस्तक को निःशुल्क
प्राप्त करने के लिए नीचे दिए सम्पर्क सूत्रों पर पूरा पता ैडै करें, पुस्तक आपके घर पहुँच जाएगी।
डाक खर्च भी नहीं लगेगा।
विवाह कैसे करें :- इस विषय को पुस्तक में पढ़ने से आत्मा को ऐसा झटका लगता है जिससे
‘‘ऑनरकिलिंग’’ की नौबत सदा के लिए समाप्त हो जाएगी।
प्रेम विवाह के लिए बताया है कि = अपने गोत्रा में न करें। अपने गाँव में न करें तथा वर्जित
गोत्रा तथा वर्जित विवाह क्षेत्रा में न करें। अच्छा रहे कि विवाह की बात माता-पिता पर ही छोड़ दें। प्रेम
विवाह से हानि तथा सामाजिक सहमति से किए गए विवाह के लाभ का हृदय छूने वाला सटीक विवरण
बताया है जिसको पढ़ने से युवा वर्ग यह गलती कभी नहीं करेंगे। समाज में शांति रहेगी। ऑनरकिलिंग
समाप्त हो जाएगी। मुदकमेबाजी भी समाप्त हो जाएगी।
लड़की को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की आजादी सदा से रही है। परंतु प्रेम विवाह
का रोग नहीं था। एक्का-दुक्का प्रमाण किसी युग में मिलता है जैसे हीर-रांझा, परंतु ये जोड़े सुखी कभी
नहीं रहे। विवाह तो सुख से जीवन बिताने के लिए व अपना वंश बढ़ाने के लिए किया जाता है।
अपनी पसंद का वर चुनने की आजादी वर्तमान में भी है। लड़की को लड़का दिखाया जाता है। दिखाया जाना चाहिए। दोनों अपनी मर्जी से हाँ करें। लड़के-लड़की को चाहिए कि माता-पिता पर
विश्वास करें। वे माता-पिता कभी अपनी संतान को दुःखी देखना नहीं चाहते। इसलिए वे अपनी बेटी
का रिश्ता उचित स्थान व लड़के से करते हैं। अंतर्जातीय विवाह कर सकते हैं। हमारा नारा है :-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
भावार्थ :- प्राणी की जाति जीव है क्योंकि मानव, देवता तथा अन्य पशु-पक्षी सब जंतु जीव हैं।
यह हमारी जाति है। मानव श्रेणी के जीव होने के नाते मानवता हमारा धर्म है यानि परमात्मा ने मानव
को समझ दी है। उसको शुभ कर्म करने चाहिए। पशुओं-पक्षियों की तरह एक-दूसरे से छीनकर, दुर्बल
को मारकर अपना स्वार्थ सिद्ध नहीं करना चाहिए। एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। यह हमारा धर्म
है। जितने धर्म विश्व में हैं, सबमें मानव हैं। किसी में भी अन्य प्राणी नहीं है। इसलिए हम सबको मानव
धर्म का पालन करना चाहिए। एक परम पिता की हम सब संतान हैं।
अन्य धर्मों में भी विवाह कर सकते हैं। इस प्रकार के अनेकों प्रकरण तथा हिदायतें पुस्तक ‘‘जीने
की राह’’ में लिखे हैं जिनको पढ़ने से अधिक आनंद व समझ आएगा।
‘‘चरित्रा निर्माण’’
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में अनेकों कथाऐं तथा उदाहरण दिए हैं जिनको पढ़कर स्त्रा-पुरूष,
जवान लड़के-लड़की कभी चरित्रा हनन नहीं कर सकते। उनको पता चलेगा कि चरित्रा की कितनी कीमत
है। चरित्राहीन स्त्रा-पुरूष को किसी भी समाज में सम्मान नहीं मिलता।
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में लिखा है कि :-
एक चरित्रावान पुरूष की परीक्षा के लिए राजा ने एक सुंदर जवान स्त्रा रात्रि में भेजी। स्त्रा उस
महापुरूष के बिस्तर पर बैठ गई। वह खड़ा हो गया और बोला, हे बहन! हे बेटी! आप बाहर जाईये।
आप अपने कुल की इज्जत की ओर देखो। अपने माता-पिता की इज्जत की ओर देखो। आपके
चरित्राहीन होने की खबर सुनकर वे समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
देश के राजा भी दुःखी होंगे कि मेरी प्रजारूप बेटी चरित्राहीन कैसे हो गई? (राजा प्रजा का पिता
होता है। वह चाहता है कि प्रजाजन कोई ऐसी गलती न करे जिससे राज्य में उत्पात मचे) वह स्त्रा फिर
भी उस कक्ष से बाहर नहीं गई तो वह महापुरूष स्वयं बाहर चला गया। फिर वह स्त्रा भी चली गई। सुबह
स्त्रा ने राजा को बताया कि राजन! वह परम जति पुरूष हैं।
चरित्रावान बेटी की कथा :- संक्षिप्त लिखते हैं, विस्तार से पुस्तक में पढ़ेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाऐंगे।
पुराने समय में एक फौजी ने अपने साथियों में अपनी चरित्रावान पत्नी की बार-बार चर्चा की।
एक मंत्रा तक बात गई। उसको ईर्ष्या हुई। राजा से परीक्षा की आज्ञा लेकर फौजी की पत्नी का धर्म
नष्ट करने गया। शर्त लगी थी कि यदि पत्नी चरित्रावान नहीं मिली तो फौजी को फाँसी लगेगी। यदि
चरित्रावान मिली तो मंत्रा जो परीक्षा में फेल होकर आएगा, उसको फाँसी लगेगी। शर्त यह थी कि कोई
ऐसी निशानी स्त्री के शरीर की बतानी होगी जिससे विश्वास हो तथा विवाह के समय का पटका (परना)
तथा कटार यानि तलवार (दोनों वस्तु रिवाज के अनुसार विवाह में मिलती थी जिसको पत्नी कभी किसी
गैर-पुरूष को नहीं देती थी) लाने हैं।
वहाँ जाकर मंत्रा को पता चला कि स्त्री वास्तव में चरित्रावान है। उसने एक दूती यानि जासूस
स्त्री को पैसे का लालच दिया। वह फौजी के घर पति की बुआ बनकर गई। नया विवाह हुआ था। स्त्री ने सुना था कि पति की बुआ है, परंतु न नाम का पता था, न गाँव का। उस दूती ने स्नान के समय
फौजी की पत्नी की जाँघ में गुप्तांग के पास काला तिल बांई ओर देखा। पटका-कटार चुराकर मंत्रा को
दे दी तथा निशानी बता दी। मंत्रा ने सभा में राजा को निशानी बताई और दोनों वस्तुऐं दिखाई तो फौजी
ने माना कि सब बात सही है। फाँसी की सजा फौजी को सुना दी। फौजी ने अंतिम इच्छा में कहा कि
मैं अपनी पत्नी से मिलना चाहता हूँ। आज्ञा पाकर घर गया। अपनी पत्नी को बताया कि तेरे कारण मुझे
15 दिन बाद फाँसी लगेगी। तूने मंत्रा से गलत कार्य किया और पटका-कटारी दे दी। मेरे कुल को
कलंक लगा दिया। फौजी की सती पत्नी ने सब बात बताई। फौजी वापिस चला गया। पीछे-पीछे वह
बेटी एक नृतकी का स्वांग करने गई। राजा को नाच दिखाने की आज्ञा ली। सभा बुलाई। वह मंत्रा भी
वहीं था। उसका नाम शेरखान था। लड़की के नृत्य से राजा अति प्रसन्न हुआ। लड़की से कहा कि माँगो
क्या माँगती हो? लड़की बोली कि वचनबद्ध हो जाओ। राजा ने कहा कि राज्य छोड़कर कुछ भी माँगो।
लड़की ने माँगा कि आपकी सभा में शेरखान नाम का व्यक्ति मेरे घर से कुछ चुराकर लाया है।
उसे फाँसी की सजा दी जाए। राजा ने शेरखान को उसके सामने खड़ा किया और बोला कि बता
शेरखान! इस लड़की की क्या वस्तु चुराकर लाया है? शेरखान ने कहा, हे राजन! यह स्त्रा झूठ बोल
रही है। मैंने कभी जीवन में इसकी शक्ल भी नहीं देखी है।
लड़की ने कहा कि यदि तूने मेरी शक्ल भी नहीं देखी है तो पटका और कटारी कहाँ से लाया?
मैं उस फौजी की पतिव्रता पत्नी हूँ जिसको तेरी झूठ के कारण तीन दिन बाद फाँसी का आदेश है। उसी
समय न्यायकारी राजा को सब माजरा समझ आ गया। लड़की ने बताया कि इसने एक बदमास वृद्धा
भेजी थी जो मेरे पति की बुआ बनकर दो दिन घर में रही थी। उसने मेरी कमर मलने के बहाने झुककर
मेरी जांघ का तिल देखा और पटका-कटारी चुराकर चली गई थी।
राजा ने फौजी को बुलाया और सजा माफ की। आधा राज्य भी दिया। शेरखान को फाँसी लगी।
(धन्य है ऐसी बेटियाँ जिन पर नाज है भारत को।)
’’पिता का कर्तव्य‘‘
पुस्तक जीने की राह में एक ऐसी कथा है जिसमें बताया है कि :-
पिता का बच्चों के प्रति कैसा भाव होना चाहिए? सत्संग सुनने से पहले पुत्रावधु अपने ससुर की
सेवा नहीं करती थी। सूखी रोटियाँ देती थी। सत्संग विचार सुनने के पश्चात् पुत्रावधु भी अपने ससुर की
सेवा करने लगी।(सास की मृत्यु हो चुकी थी।) बेटा भी नालायक था, उसमें सुधार हो गया। घर स्वर्ग
बन गया।
इस कथा को पढ़कर पुत्रावधुऐं अपने सास-ससुर की सेवा माता-पिता की तरह करेंगी। पुत्रा भी
आज्ञाकारी हो जाऐंगे। घर स्वर्ग बन जाएगा।
‘‘पुत्रा तथा पुत्रा में अंतर न समझें’’
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में यह प्रसंग ऐसा है जिसको पढ़ने के बाद पुत्रा तथा पुत्रा के भेद वाली
दुर्बुद्धि सदा के लिए समाप्त हो जाती है। जिस कारण से बेटियों की गर्भ में की जा रही हत्या को पूर्ण
विराम लगेगा।
‘‘पुत्रा प्राप्ति न होने से आहत दम्पति को विशेष हिम्मत मिलेगी’’
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में यह प्रसंग ऐसा तार्किक है कि जो पति-पत्नी संतान न होने के कारण अपने आपको किवंदतियों के कारण समाज से अलग-थलग महसूस करते हैं, उनके विषय में ऐसा
उदाहरण दिया है जिसको पढ़कर निःसंतान दम्पति संतान वालों से भी श्रेष्ठ महसूस करेंगे।
‘‘नशीली वस्तुओं को त्याग देगा मानव’’
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में शास्त्रों तथा संतों की वाणी से तर्क के साथ तथा प्रमाणों के साथ
वर्णन नशानिषेध के विषय में लिखा है जिसको पढ़कर कोई महामूर्ख ही भविष्य में तम्बाकू, सुल्फा, शराब
का नशा करेंगे। 99ः पाठक नशे से अवश्य परहेज करेंगे।
‘‘घर की कलह समाप्त हो जाती है’’
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में ऐसे उल्लेख हैं जिनके पढ़ने-सुनने से परिवार की आपसी तू-तू मैं-मैं
समाप्त होकर प्यार से जीवन जीते हैं।
संक्षिप्त में :- सास छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ा किया करती। यदि पुत्रावधु से कुछ हानि
हो जाती तो सारा दिन उसी बात को लेकर कहासुनी करती रहती थी। अपने पुत्रा को भी बढ़ा-चढ़ाकर
बात बताकर पिटवाती थी। एक दिन अपनी बहन के द्वारा अधिक आग्रह करने पर सास सत्संग सुनने
चली गई। सत्संग में बताया गया था कि कोई भी घर का सदस्य हानि करना नहीं चाहता, परंतु जो कर्मों
में हानि परमेश्वर ने लिखी है, वह होकर रहती है। किसी घर के सदस्यों से कोई हानि हो जाए तो उससे
झगड़ा नहीं करना चाहिए। हानि तो हो चुकी है, कलह करने से वह हानि तो ठीक नहीं होगी, उल्टा
मानसिक शांति भी समाप्त हो जाती है। जीने की राह सत्संग से ही जानी जाती है। सास सत्संग सुनकर
घर आ गई। एक दिन सुबह पुत्रावधु ने भैंस का दूध निकालकर छत से लटक रहे कुंडी वाले सरिये से
दूध की बाल्टी टाँगी तो गलती से बाल्टी ठीक से नहीं टँगी। बाल्टी जिसमें लगभग पाँच लीटर दूध था,
पृथ्वी पर गिर गई। सारा दूध बिखर गया। पुत्रावधु अपनी सासू माँ की और डरी हुई नजर से देखने
लगी। वह सासू माँ के मुख की ओर देख रही थी कि यह क्या आग उगलेगी? सासू माँ पर सत्संग में
सुने विचार विशेष प्रभाव किए हुए थे। बोली, बेटी! यह दूध आज हमारी किस्मत में नहीं था। तेरा कोई
दोष नहीं है। इस दूध को ऊपर-ऊपर से हाथ से उठाकर बाल्टी में डालकर भैंस को पिला दे। पुत्रावधु
को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि सासू माँ ही यह शीतल शब्द बोल रही है। उसके पश्चात्
वह घर जो नरक बना था, स्वर्ग बन गया।
पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ में अद्वितीय दिव्य अध्यात्म ज्ञान है जो सर्व धर्मों के शास्त्रों से प्रमाणित है।
जैसे गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में कहा है कि :-
जो साधक शास्त्राविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करते हैं यानि जो भक्ति
के मंत्रा व यज्ञ आदि शास्त्रों में नहीं लिखे हैं, उनका जाप व यज्ञ करते हैं। उनको न तो सुख की प्राप्ति
होती है, न सिद्धि यानि भक्ति की शक्ति जो सब कार्य सिद्ध करती है तथा न उसकी गति यानि
जन्म-मरण से मुक्ति प्राप्त होती है अर्थात् ऐसी साधना व भक्ति से अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता
है।(गीता अध्याय 16 श्लोक 23)
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए कर्तव्य यानि जो भक्ति
व साधना कर्म करने चाहिऐं तथा जो अकर्तव्य यानि न करने चाहिऐं, इसलिए शास्त्रा ही प्रमाण हैं। (गीता
अध्याय 16 श्लोक 24) संत रामपाल दास जी द्वारा बताया सर्व ज्ञान तथा सर्व साधना व भक्ति का ज्ञान शास्त्रोक्त है।
यही कारण है कि संत रामपाल दास जी के अनुयाईयों को परमात्मा की भक्ति से सर्व लाभ मिल
रहे हैं जो ऊपर गीता के श्लोक में बताए हैं जो शास्त्राविरूद्ध साधकों को नहीं मिलते। जिस कारण से
इनके अनुयाईयों की सँख्या में अद्वितीय वृद्धि हो रही है। इस प्रकार की अन्य पुस्तक भी हैं :- ज्ञान गंगा,
अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान, गीता तेरा ज्ञान अमृत, गरिमा गीता की, भक्ति से भगवान तक। संत
रामपाल जी के विचारों से मानव समाज में सुधार आएगा। गिरती मानवता का उत्थान होगा। देश के
लड़के-लड़की अपनी संस्कृति पर लौटेंगे। भारत देश में अमन होगा। सब मिलकर एक-दूसरे के दुःख
को बाँटेंगे। सुखमय जीवन जीऐंगे। रेप व यौन उत्पीड़न की घटनाऐं समूल नष्ट हो जाएंगी।
रेप (बलात्कार), यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए भारत सरकार तथा राज्य सरकारों ने भी
सख्त कानून बनाए हैं। मौत तथा आजीवन कारावास तक प्रावधान किया है। अच्छी बात है। कानून भी
काम करता है, परंतु नहीं लगता है कि सख्त कानून से यौन अपराध कम हो जाऐंगे। ये महज सरकार
का जनता को शांत करने का उपाय है। जैसे हत्या के अपराधी को मौत तथा आजीवन जेल की सजा
का प्रावधान है, परंतु प्रतिवर्ष हत्या के अपराध बढ़ रहे हैं। हमारा मानना है कि कानून कमजोर वर्ग पर
ही लागू होता है क्योंकि बड़े लोग कानून की गिरफ्त से बच जाते हैं। मुकदमा दर्ज तक नहीं होता। ऐसे
अपराध उन बड़े लोगों के बच्चे ही करते हैं। कानून से अधिक भय समाज का होता है। समाज के भय
से भी व्यक्ति बुराईयों से डरता है क्योंकि उसको पता होता है कि तुझे समाज में रहना है। सत्संग के
अभाव से मानव समाज में ही धार्मिक विचारों की कमी हो रही है। जो आज जवान हैं, वे ही वृद्ध होकर
बड़े-बूढ़े कहलाऐंगे। उनके पास ही आध्यात्मिक विचार नहीं होंगे तो वे बच्चों को क्या शिक्षा देंगे। परंतु
जब मानव (स्त्रा/पुरूष) को परमात्मा के विधान का ज्ञान होगा, तब वह सर्व पापों से बचेगा। अपराध
करना विष (च्वपेपवद) खाने के तुल्य समझेगा। वह संत रामपाल दास जी महाराज के सत्संगों से हो
सकता है। सत्संग के माध्यम से अच्छे विचार जनता को सुनने को मिलेंगे तो इस समस्या का समाधान
पूर्ण रूप से हो जाएगा। संत रामपाल दास जी महाराज द्वारा दिए जा रहे सत्संग-विचार के वचनों का
जादुई प्रभाव पड़ता है।
‘‘माता-पिता के प्रति सेवा तथा सम्मान में कमी’’
वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति की प्रबल इच्छा है कि अपने बेटा-बेटी को उच्च शिक्षा दिलाऐं। बच्चों
को अच्छा रोजगार मिले। बच्चे जिनकी किस्मत में परमात्मा ने लिखा है, वह प्राप्त कर लेते हैं। उच्च
सरकारी पद, अच्छा व्यवहार करते हैं, धनी हो जाते हैं। परंतु अध्यात्म ज्ञान के बिना माता-पिता के प्रति
वह भाव नहीं रहता जिसकी बच्चों से अपेक्षा की जाती है। उनको प्यार के स्थान पर रूखा व्यवहार ही
मिलता है। बेटा लायक है तो पुत्रावधु में अच्छे संस्कार न होने से कलह का नृत्य घर में स्वाभाविक है।
यह अनुभव के साथ-साथ प्रैक्टिकली भी प्रमाणित है कि वर्तमान में वृद्धों का जीवन नरक हो चुका है।
बेटी ससुराल चली जाती है। बेटे पर निर्भर रहना होता है। बेटा व पुत्रावधु यदि अच्छे हैं और नौकरी के
लिए दूर स्थान पर जाना पड़ता है। यह मजबूरी तथा जरूरी है। माता-पिता अनाथ हैं। वृद्ध अवस्था
में परिवार की सेवा की आवश्यकता होती है। वह संभव नहीं। यदि बच्चों को संत रामपाल दास जी के
सत्संग सुनने को मिलेंगे तो उनमें शिष्टाचार की भावना जागृत होती है। दयाभाव उत्पन्न होता है। जब
वृद्ध भी सत्संग में जाएंगे तो अपने को अकेला नहीं मानेंगे क्योंकि सत्संग में सेवादार उनको अपनों जैसा प्यार व सम्मान देते हैं। उनकी सेवा करते हैं। उनका जीवन सुख से व्यतीत हो जाता है। बच्चों का काम
के लिए दूर या निकट जाना भी अनिवार्य है। माता-पिता यानि वृद्ध को सहारे की अति आवश्यकता है।
संत रामपाल दास गुरू जी ऐसी व्यवस्था करना चाहते हैं कि धरती स्वर्ग बने। वर्तमान में जो उच्च पद
से निवृत अधिकारी या व्यापारी (वृद्ध स्त्रा-पुरूष) शहर में पार्क में घूमते हैं या वहाँ बैठकर कुछ समय
बिताते हैं और वर्तमान समय की चर्चा करते हैं। फिर अंत में अपने-अपने बच्चों की अनदेखी की चर्चा
डरे-डरे से करते हैं। कोई पुत्रा-पुत्रावधु को सराहता है, कोई बिसराहता है। बनता कुछ नहीं, मन का बोझ
हल्का करना चाहते हैं। कुछ दिन में वह बात जो पुत्रा-पुत्रावधु को बिसराहने (निकम्मा बताने) वाली होती
है, पुत्रा-पुत्रावधु के पास अवश्य SMS हो जाती है। वृद्धों को फिर और अधिक कटी-जली सुनने को मिलती
है। संत रामपाल दास जी का उद्देश्य है कि प्रत्येक गाँव व शहर में विशाल सत्संग स्थल बनाऐं जहाँ पर
प्रति शनिवार-रविवार को संत रामपाल दास जी के सत्संग DVD के माध्यम से LED पर चलाए जाऐं।
भोजन-भण्डारे का आयोजन किया जाए। गाँव व शहर के वे वृद्ध जिनके बच्चे दूर या निकट रोजी-रोटी
के लिए गए हैं, अपने को अकेला तथा असहाय न समझें। बेटों-पुत्रावधुओं की निंदा के स्थान पर परमात्मा
की चर्चा करें।
जो वृद्धजन आश्रम में रहना चाहें, वह रहें। उनकी सेवा आश्रम के सेवादार करेंगे। उनको
परमात्मा के विधान का ज्ञान होता है। वे सबको अपना मानते हैं। उस आयु (वृद्धावस्था) में उन वरिष्ठ
नागरिकों को भी पता चल जाता है कि अपना कौन है क्योंकि सत्संग में यही निर्णय मिलता है। इस प्रकार
मानव जीवन सरल होकर आपसी भाईचारा व प्रेम बढ़ेगा। धरती स्वर्ग बनेगी।
हम केवल इतना चाहते हैं कि संत रामपाल दास जी के सत्संग वचनों तथा अन्य संतों द्वारा
बताए सत्संग वचनों की जाँच शास्त्रों से करके न्यायालय निर्णय करे कि किसके प्रवचन या पुस्तक के
लेख शास्त्रा प्रमाणित हैं? किसकी साधना शास्त्राविधि अनुसार है। केवल उसी के प्रचार की आज्ञा दी
जाए। उसके सामने आने वाली बाधाओं का समाधान हो। यह जनहित का कार्य है।
जो बलात्कार (Rape) तथा यौन उत्पीड़न की घटनाऐं जो समाचारों में सुनने को मिलते हैं, ये
तो कुल अपराधों का दस प्रतिशत है क्योंकि 90ः तो अपनी इज्जत खराब होने के डर से तथा दबंगों
के भय से किसी को नहीं बताते। आजीवन घुट-घुटकर मरने को विवश हैं। इस घिनौने अपराध पर
अंकुश सत्य अध्यात्म ज्ञान से लग सकता है। वर्तमान में प्रवचन करने वाले धार्मिक गुरूओं की बाढ़-सी
आई है। दूसरी ओर अपराधों में भी अद्वितीय इजाफा हो रहा है। इस कारण यह है कि संत रामपाल
दास के अतिरिक्त किसी भी गुरू का ज्ञान तथा भक्ति मंत्रा शास्त्रों के अनुसार नहीं है। जिस कारण से
श्रोताओं पर स्थाई प्रभाव नहीं पड़ता।
संत रामपाल जी के प्रवचन कठोर हृदय को मुलायम बना देते हैं। श्रोताओं को विवश होकर
अपने कर्मों पर विवेचन करना पड़ता है। हम यह भी विकल्प बताना चाहते हैं कि साधना टी.वी. चैनल
पर सन् 2012 में सर्व संतों के विचार संत रामपाल जी के द्वारा विवेचन किए गए चलाए थे। उनकी DVD's बना रखी हैं। माननीय न्यायालय आसानी से तय कर सकता है कि कौन गलत, कौन ठीक ज्ञान
प्रचार कर रहा है क्योंकि उन DVD's में सब शास्त्रों को दिखाया गया है। उन सत्संगों का Titel है
‘‘आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा संत रामपाल V/s अन्य गुरूजन’’। संत रामपाल दास जी के विचार तथा अन्य
संतों (गुरूओं) के विचार दोनों को मिलाकर बनाई गई DVD's हैं जो हाथों-हाथ सच्चाई देती हैं।
सत्संगों की विडियो व पुस्तक निःशुल्क Download कर सकते हैं। www.jagatgururampalji.org पर। नोट :- पुस्तक ‘‘जीने की राह’’ निःशुल्क मँगवाने के लिए निम्न नंबरों पर अपना नाम, पूरा
पता SMS करें। डाक का खर्च भी आपको नहीं देना है। पुस्तक आपके घर निःशुल्क भेज दी जाएगीः-
SMS TO. 7027000825, 7027000826, 7027000827
For Whatsaap. 9992600893
संत रामपाल दास जी के आदेश से ‘‘कबीर मानव कल्याण समिति’’ बनाई है। उसके गठन
का कारण तथा उसके कार्य की जानकारी जनता को देने के लिए पैम्पलेट तैयार किया है जो निम्न हैः-
ऐसी मौत ना करना का त ना करना का त ना करना का ैत ना करना का त ना करना कोई
मानव समाज से निवेदन :-
हम संत रामपाल दास महाराज जी के अनुयाई अपने गुरू जी के आदेश से मानव समाज की
कुछ सेवा तथा समाज से कुरीतियों और बुराईयों को समाप्त करने के इच्छुक हैं। हम सब मिलकर गरीब
(निर्धन) व्यक्तियों की सहायता करना चाहते हैं। छत्तीस बिरादरी में कोई भी व्यक्ति निर्धनता के कारण
आत्महत्या न करे। हमने ऐसी योजना बनाई है हमारे गुरूदेव संत रामपाल दास जी ने दिनाँक 28 अप्रैल
2018 के एक समाचार पत्रा में एक दुःखद समाचार पढ़ा जिसमें लिखा था कि एक व्यक्ति टी.बी. की
बीमारी से ग्रस्त था। चार बेटियाँ तथा एक सबसे छोटा पुत्रा था। चालीस वर्षीय व्यक्ति ने अपनी तीन
बेटियों (एक चार वर्ष की, दूसरी सात वर्ष की तथा तीसरी ग्यारह वर्ष की) को भाई की मोटरसाईकिल
पर बैठाकर नहर पर ले गया। उन तीनों को जहर देकर नहर में डाल दिया। स्वयं भी जहर खाकर
नहर में गिर गया। चारों की मौत हो गई। आत्महत्या तथा हत्या करने से पहले भाई को फोन से सूचना
दी। एक बेटी सबसे बड़ी तथा इकलौता पुत्रा पत्नी के हवाले छोड़ गया।
तीनों मासूम पुत्रियों के फाईल फोटो जो समाचार पत्रा में छपे थे, निम्न हैं :-
प्रेरणा हुई कि ऐसी घटना को टाला जाना चाहिए। निर्धनता तथा समाज में फैली कुरीतियाँ जैसे
दहेज प्रथा, विवाह पर अनाप-सनाप खर्च करना, मृत्यु भोज, बड़ी बारात आदि-आदि तथा अन्य बुराईयाँ
जैसे नशा आदि-आदि के कारण निर्धन व्यक्ति कर्ज तथा गंभीर बीमारी से परेशान होकर तथा अपनी
कन्याओं के विवाह व मँहगी पढ़ाई के कारण आत्महत्या तक परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। जैसा कि
इस दुःखद समाचार में एक माता-पिता ने पुत्रा प्राप्ति के लिए चार बेटियों को जन्म दिया, पाँचवां पुत्रा
हुआ। पिता को टी.बी. की बीमारी लग गई (जैसा कि समाचार पत्रा में खबर छपी है) उस व्यक्ति के सामने दहेज रूपी राक्षस अड़कर खड़ा हो गया। उसने न जाने कितने दिन या महीने विचार किया होगा
कि मेरी मृत्यु हो सकती है, अकेली पत्नी कैसे चार बेटियों को पढ़ाएगी कैसे दिनो-दिन समाज में बढ़
रही गलत घटनाओं से मेरी पुत्रियों की इज्जत की रक्षा करेगी तथा विवाह का खर्च वहन करेगी।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संतान चाहे बेटा हो या बेटी, जान से भी प्रिय होते हैं। परंतु दहेज रूपी
राक्षस व समाज में प्रतिदिन हो रही बलात्कार की घटनाओं के डर ने इस पिता को इतना मजबूर कर
दिया कि अपने दिल के टुकड़ों तीन मासूम बेटियों की हत्या कर दी और स्वयं भी आत्महत्या कर ली।
यह दुःखद घटना पढ़ व विचार करके कलेजा मुँह को आता है।
संत रामपाल दास जी के सत्संग वचनों से लोकवेद की गलत धारणाओं से छुटकारा मिलता
है। जिनके कारण पिता ने पुत्रा की प्राप्ति की इच्छा से चार बेटियों को उत्पन्न किया। पाँचवां पुत्रा हुआ
तो संतुष्टि हुई जो एक महा अज्ञानता व सामाजिक गलत धारणा है। संत रामपाल जी महाराज द्वारा
लिखी पुस्तकों को पढ़कर तथा सत्संग सुनकर बेटे तथा बेटी का अंतर समाप्त हो जाता है। वैज्ञानिक
युग में मानव अपने सामर्थ्य अनुसार एक या दो संतान उत्पन्न करके आगे बढ़ सकता है। दो संतान
लड़का हो या लड़की, सामर्थ्य अनुसार अधिक भी बच्चे उत्पन्न हों तो कोई दोष नहीं है क्योंकि अभी
सरकार की ओर से ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है जिसमें संतान की सँख्या निर्धारित की हो।
प्रत्येक प्राणी को परमात्मा ही संस्कार अनुसार पालता है :- संत रामपाल दास जी अपने सत्संग
वचनों में परमात्मा का विधान बताते हैं तथा प्रमाण भी बताते हैं। वे बताते हैं कि मेरे रिश्तेदार की मृत्यु
छोटी आयु में ही हो गई थी। चार संतान हैं। उस समय बड़ा लड़का लगभग दस वर्ष का, छोटा एक
वर्ष का था। वर्तमान में वे बच्चे उनसे अच्छी वित्तीय स्थिति में हैं, जिन अन्य के पिता जीवित हैं। यदि
उस व्यक्ति को जिसने मासूम बेटियों को मारा, आप मरा, परमात्मा के विधान का पता होता तो ऐसी
गलती करके घोर पाप न करता।
परमात्मा का विधान है कि हत्या तथा आत्महत्या करने वाला नरक में जाता है।
आत्महत्या तथा हत्या दोनों परमात्मा के विधानानुसार घोर अपराध हैं। यह किसी भी परिस्थिति
में नहीं होना चाहिए। अज्ञानता तथा सामाजिक कुरीतिओं (दहेज, भात, छुछक तक बेटी का खर्च करना,
बारात का अधिक आना-बुलाना) के कारण तीन मासूम कन्याओं की हत्या तथा आत्महत्या हुई है। हम
चाहते हैं कि ऐसी गलती कोई ना दोहराए।
इसलिए संत रामपाल जी महाराज के सत्संग वचन सुनकर उनसे निःशुल्क जुड़ें ताकि हमारी
तरह आप भी सुखी हों, उनसे जुड़ने के बाद शरीर के सभी प्रकार के रोग नष्ट होंगे। सभी प्रकार के
नशे छूट जाऐंगे। जीवन यापन के लिए थोड़ी कमाई से ही काम चल जाएगा। निर्धनता खत्म हो जाएगी।
जीवन के सभी दुःख समाप्त हो जाऐंगे। सत्संग से मनुष्य को जीवन के मूल कर्तव्य का ज्ञान होता है,
मनुष्य सारे विकार त्याग देता है। उसके जीवन में सुखों की बहार आ जाती है, किसी भी प्रकार का दुःख
नहीं रहता। इसलिए एक बार निम्न सम्पर्क सूत्रों से अवश्य बात करें। हम हर संभव सहायता करेंगे।
दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे बेटियों व बहनों पर बलात्कार तथा छेड़छाड़ तथा दहेज प्रताड़ना के केस
संत रामपाल दास जी के तत्वज्ञान जो परमात्मा के संविधान अनुसार बताया गया है, से समाप्त हो जाते
हैं। व्यक्ति को भगवान का डर बनेगा, जिस कारण वह गलत कार्य नहीं कर सकता। दीक्षा लेकर मर्यादा
में रहकर भक्ति करनी होती है। परमात्मा कबीर जी की शक्ति से आत्मा में शक्ति आती है जिससे गलत कार्य करने की प्रेरणा कभी नहीं मिलती। न कोई गलत कदम उठाने को मन करता क्योंकि परमात्मा
के ज्ञान से वह घोर पाप लगता है जैसे विष (च्वपेवद) खाने के परिणाम से परिचित व्यक्ति विष को छूने
हम मानव समाज की ऐसे मदद करेंगे :-
हमारे गुरूदेव संत रामपाल दास जी ने कबीर मानव कल्याण समिति का गठन किया है। 36
बिरादरी में जिस किसी की नाजुक स्थिति उत्पन्न हो जाए, वह समिति के निम्न नंबरों पर सम्पर्क करे।
हम हरसंभव मदद करेंगे। उसकी बेटियों की 10़2 तक की पढ़ाई तथा विवाह, पुस्तक, ड्रैस, पैन,
किताब, स्कूल बस का किराया आदि का खर्च कबीर मानव कल्याण समिति वहन करेगी। यदि कोई
निर्धनता के कारण अन्य परेशानियों से जूझ रहा है तो उसकी भी यथासंभव सहायता करेंगे। उनके लिए
शर्त होंगी :-
1ण् संत रामपाल दास जी महाराज से दीक्षा लेकर आजीवन भक्ति करनी होगी।
2ण् किसी भी नशीली वस्तु का प्रयोग व सहयोग नहीं करना है।
3ण् दीक्षा लेने वाले भक्त को जो नियम निभाने आवश्यक हैं, वे आजीवन पालन करने होंगे।
4ण् बेटियों के माता-पिता दोनों को दीक्षा लेनी होगी तथा वर्ष में कम से कम चार बार सत्संग
में बच्चों समेत आना होगा ताकि बच्चों में अच्छे संस्कार पड़ें। बुराईयों से बचे रहें।
5ण् बेटियाँ रहेंगी माता-पिता के पास, उनकी पढ़ाई का खर्च समिति के सदस्य देंगे। उनकी
फीस, किताब, ड्रैस आदि की रसीद कबीर मानव कल्याण समिति के नाम कटवाकर देनी होगी। उन
परिवारों का नाम पंजीकृत किया जाएगा। प्रत्येक महीने अपने आप उनके बच्चों का खर्च मिल जाया करेगा।
यदि किसी ने एक भी मर्यादा भंग कर दी यानि शराब आदि का नशा किया या अन्य नियम
भंग किया तो सहायता बंद कर दी जाएगी। यदि वह आगे गलती न करने की प्रतिज्ञा करेगा तो सुविधा
चालू कर दी जाएगी। एक गुप्तचर विभाग अनुयाईयों का बनाया है जो गलती करने वाले की सूचना
कमेटी को देगा। उसकी पड़ताल जाँच टीम करेगी। समाज से सर्व बुराई समाप्त हो जाएंगी। सब भक्ति
करके सुखी होंगे तथा मोक्ष प्राप्त करेंगे। कोई भी मानव रोग, कन्याओं के खर्चे तथा अन्य कर्ज (ऋण)
के कारण हताश होकर अनमोल मानव (स्त्रा/पुरूष) जन्म को नष्ट नहीं करेगा। समाज सुधार, आपसी
भाईचारा, प्यार तथा आत्म-उद्धार होगा। भारत फिर से सोने की चिड़िया होगा। देश में सत्ययुग का
पुन्रउत्थान होगा।
भारतवासी सुख का जीवन जीऐंगे।
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