Geeta gyan
तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा श्रीमद्भगवद गीता का वास्तविक अर्थ
Spiritual Leader Saint Rampal Ji
#Who_Is_Kaal
अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन कह रहा है कि भगवन् ! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान कर रहे हैं। हे सहस्त्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले भगवान ! आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकराल रूप को देखकर धीरज नहीं कर पा रहा हूँ।
जहाँ सतगुरु का ज्ञान समझने के बाद व्यक्ति को केवल उनके किताबों में ही लिखे नियमों का पालन करने और किताबों द्वारा ही दी भक्ति साधना को करने से लाभ प्राप्त नहीं होता, इसके लिए उसे परमेश्वर के ही आधिकारी संत से दीक्षा लेनी पड़ती है दीक्षा की प्रक्रिया में इच्छुक व्यक्ति को सतगुरु द्वारा ही निर्धारित पाठ्यक्रम को गुरु वचन से शिष्य को प्रदान किया जाता है अर्थात "नाम" (मंत्र) प्रदान किया जाता है इसे "नाम दीक्षा" या "नामदान" भी कहा जाता है। "दीक्षा", "नाम", "नामदान" "नाम उपदेश" और "नाम दीक्षा" ये एक ही शब्द के पर्याय है।
दीक्षा का उद्देश्य
दीक्षा प्राप्ति का एकमात्र उद्देश्य मोक्ष है अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्ति और शिष्य को मुक्ति तभी सम्भव होती है जब व्यक्ति परमेश्वर के अधिकारी संत से गुरु दीक्षा ले । सच्चे गुरु से मिली सतभक्ति ( नाम दीक्षा ) से "अच्छा स्वास्थ्य", "समृद्धि", "खुशी / संतोष" मिलने वाले निशुल्क लाभ हैं। अतः दीक्षा इन सुखो को प्राप्त करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ नहीं लेनी चाहिए उद्देश्य केवल मोक्ष का ही होना चाहिए।
मानव जीवन में दीक्षा कितनी जरूरी ?
“जब तक पूर्ण गुरु का सत्संग सुनने को नहीं मिलता तब तक इस बात का अंदाजा ही नहीं लगता कि मनुष्य जीवन कितना कीमती है ।“
चाहे आप कितने भी धनी पुरुष हो, गोरखनाथ जी जैसे सिद्ध पुरुष हो, अनगिनत कलाओं के स्वामी हो, समाज में मान-सम्मान प्राप्त शख्सीयत हो, चाहे इस पृथ्वी के राजा भी क्यों न हो, अगर गुरु दीक्षा नही ली है तो स्वर्ग में भी स्थान नहीं मिलता। इस संबंध में सुखदेव मुनि की कथा प्रमाणित है
कबीर साहेब कहते हैं ।
गुरु बिन माला फेरते,गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछ लो वेद पुराण।।
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