who is aadi Ram
#who_is_real_ram
कबीर, राम राम सब जगत बखाने #आदिराम कोई बिरला जाने
#1_एक राम दशरथ का बेटा
#2_एक राम घट घट घट में बैठा
#3_एक राम का सकल पसारा
#4_एक राम सबहू से न्यारा
जब #सतयुग में #राम और #कृष्ण भगवान #नहीं थे तो उस समय लोग #किसकी #भक्ति #करते #थे।
गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 16
द्वौ, इमौ, पुरुषौ, लोके, क्षरः, च, अक्षरः, एव, च, क्षरः, सर्वाणि, भूतानि, कूटस्थः, अक्षरः, उच्यते।।
अनुवाद: इस संसारमें दो प्रकारके भगवान हैं नाशवान और अविनाशी और ये सम्पूर्ण भूतप्राणियोंके शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है।
गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 17
उतमः, पुरुषः, तु, अन्यः, परमात्मा, इति, उदाहृतः, यः, लोकत्रायम् आविश्य, बिभर्ति, अव्ययः, ईश्वरः।।
अनुवाद: उत्तम भगवान तो अन्य ही है जो तीनों लोकोंमें प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर परमात्मा इस प्रकार कहा गया है।
कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
त्रिदेवा (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) शाखा भये, पात भया संसार।।
कबीर, तीन देवको सब कोई ध्यावै, चौथा देवका मरम न पावै।
चौथा छांडि पँचम ध्यावै, कहै कबीर सो हमरे आवै।।
कबीर, तीन गुणन की भक्ति में, भूलि पर्यौ संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरै पार।।
कबीर, ओंकार नाम ब्रह्म (काल) का, यह कर्ता मति जानि।
सांचा शब्द कबीर का, परदा माहिं पहिचानि।।
कबीर, तीन लोक सब राम जपत है, जान मुक्ति को धाम।
रामचन्द्र वसिष्ठ गुरु किया, तिन कहि सुनायो नाम।।
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहीं संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु न जनम्यां नारि।।
कबीर, चार भुजाके भजनमें, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरै तासु को, जाके भुजा अनंत।।
कबीर, वाशिष्ट मुनि से तत्वेता ज्ञानी, शोध कर लग्न धरै।
सीता हरण मरण दशरथ को, बन बन राम फिरै।।
कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।
कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत।।
गरीब, दुर्वासा कोपे तहां, समझ न आई नीच।
छप्पन कोटि यादव कटे, मची रूधिर की कीच।।
कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम।
चीन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बडो की राम।।
कबीर, कह कबीर चित चेतहू, शब्द करौ निरुवार।
श्री रामचन्द्र को कर्ता कहत हैं, भूलि पर्यो संसार।।
कबीर, जिन राम कृष्ण निरंजन किया, सो तो करता न्यार।
अंधा ज्ञान न बूझई, कहै कबीर बिचार।।
कबीर, तीन गुणन (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति में, भूल पड़यो संसार।
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