भाई दूज की सार्थकता

भाई दूज के इस त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित यह पर्व प्राचीनकाल से ही मनाया जा रहा है और इसका इतिहास रक्षा बंधन के इतिहास से भी पुराना माना जाता है। वास्तव में भाई-बहन के अनोखे बंधन का यह सबसे पुराना पर्व माना गया है। इस पर्व को लेकर कई सारी ऐतिहासिक तथा पौराणिक कथाएं प्रचलित है।

          यमराज और यमुना की कहानी

इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है। उसके अनुसार – सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संताने थी। पुत्र का नाम यमराज था और पुत्री का नाम यमुना। यम ने जब अपनी नगरी यमपुरी का निर्माण किया तो उनकी बहन यमुना भी उनके साथ रहने लगी।

यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख काफी दुखी होती थी। इसलिए वह यमपुरी का त्याग कर गोलोक को चली गयी। समय बीतता गया, यमुना ने कई बार अपने भाई को अपने घर बुलाया लेकिन अपने कार्यों और दायित्वों के व्यस्तता के चलते यमराज अपने बहन से मिलने का समय नही निकाल सके। इस प्रकार से कई वर्ष बीत गये और एक दिन यमराज को अपने बहन यमुना की याद आई तो उन्होंने ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा लेकिन उनका कुछ पता ना चला।

तब यमराज स्वयं गोलोक गए, जहां उनकी यमुना जी से भेंट हुई। अपनी बहन के आग्रह पर वह उनके घर गये, जहां उनकी बहन यमुना ने उनकी खूब सेवा सत्कार किया और उन्हें तमाम प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खिलाया।

यमुना की इस सेवा से प्रसन्न होकर यमराज ने उनके कोई वर मांगने को कहा तब उन्होंने कहा कि भैया मैं चाहती हूँ भी व्यक्ति आज के दिन (कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया) को जो भी भाई अपने बहन के यहां जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करें उसे आपके कोप का सामना ना करना पड़े। इसके साथ ही जो भी व्यक्ति मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी ना जाए। ऐसी मान्यता इसी पौराणिक घटना के बाद से भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित भाई दूज का यह पर्व मनाया जाने लगा।

            भाई दूज के महात्म की कथा

एक राजा अपने साले के साथ चौपड़ खेला करता था, जिसमें उसका साला हमेशा जीत जाता था। इस पर राजा ने सोचा अवश्य ही यह भाई दूज पर अपनी बहन से टीका कराने आता है और उसी के प्रताप से जीत जाता है।

अतः राजा ने भाई दूज आने पर साले को अपने यहां आने से रोक दिया और चारो तरफ कड़ा पहरा लगवा दिया, ताकि उसका साला छुपकर भी अपनी बहन से टिका ना करवा सके। तब यमराज के कृपा से वह कुत्ते का रुप धारण करके अपने बहन के पास टिका कराने पहूँचा। कुत्ते को देखकर उसकी पत्नी ने अपना टीके से सना हाथ उसके माथे पर फेरा और कुत्ता वापस चला गया।

इसके बाद वह वापस लौटकर बोला मैं भाई दूज का टिका लगवा आया, आओ अब चौपड़ खेले। उसकी यह बात सुनकर राजा बहुत चकित हुआ। तब उसके साले ने उसे इस घटना की पूरी कहानी बतायी। उसकी बातों को सुनकर राजा ने टीके के महत्व को मान लिया और अपनी बहन से टिका कराने चला गया। यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और सोचने लगे कि इस प्रकार से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

अपने भाई को चिंतित देख उनकी बहन यमुना ने उनसे कहा कि भैया आप चिंता ना करें, मुझे यह वरदान दे कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें। उन्हें यमपुरी में ना जाना पड़े और वह जीवन मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करें। यमराज ने उनके इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और तभी से भाई-बहन के मिलन के इस पर्व को भाई दूज के रुप में मनाया जाने लगा।
हमारे पवित्र ग्रंथ गीता जी अनुसार 
# BhaiDooj  क्या आपको पता है भाई दूज मनाना कहीं शास्त्रों में प्रमाण है इसका प्रमाण नहीं तो वेदों में है नहीं गीता में है फिर हम क्यों मनाते हैं इस भाई दूज के लिए अधिक जानकारी के लिए सुनिए संत रामपाल जी महाराज के सत्संग साधना टीवी पर 7:30 से लेकर 8:30 तक
अध्याय 16 के श्लोक 23,24 में कहा है कि जो व्यक्ति शास्त्रविधि को छोड़कर अपनी मन मर्जी से {रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी तथा अन्य देवी-देवों की पूजा, मूर्ती पूजा, पितर पूजा, भूत पूजा, श्राद्ध निकालना, पिण्ड भरवाना, धाम पूजा, गोवर्धन की परिक्रमा करना, तीर्थों के चक्कर लगाना, तप करना, पीपल-जाँटी-तुलसी की पूजा, बिना गुरु के नाम जाप, यज्ञ, दान करना, गुड़गांवा वाली देवी, बेरी वाली, कलकते वाली, सींक पाथरी वाली माता की पूजा, समाध की पूजा, गुगा पीर, जोहड़ वाला बाबा, तिथि पूजा (किसी भी प्रकार का व्रत करना), बाबा श्यामजी की पूजा, हनुमान और यमराज आदि की पूजा शास्त्रविरूद्ध कहलाती है।} पूजा करते हैं, वे न तो सुखी हो सकते, उनको न सिद्धि यानि आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है और न ही उनको मुक्ति प्राप्त होती। इसलिए अर्जुन शास्त्र विधि से करने योग्य कर्म कर जो तेरे लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं कि गलत साधना लाभ के स्थान पर हानिकारक होती है।
कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। माली सींचे मूल कूँ, फलै फूलै अघाय।।

बहन-भाई को सतभक्ति का मार्ग खोजना चाहिए। सुनी सुनाई लोक कथाओं पर आधारित भक्ति करके अनमोल मानुष जीवन व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए क्योंकि अंत समय में यम के दूत ही गलत साधना करने वालों का गला दबोच कर लें जाते हैं और धर्मराय के उनके कर्मों का लेखा जोखा देखने के बाद स्वर्ग और नरक में यात्नाएं भोगने के लिए धकेल दिया जाता है। स्वर्ग की आशा करने वाले भी मोक्ष कदापि नहीं प्राप्त कर सकते।

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